परिचय ०
मन कि शांति का ये जो आज का विषय है ये एक महत्पूर्ण विषय हैं जो कि आज काल कि समाज मैं बहुत नजर आ रहे हैं, हर एक घर मैं , हर एक मोहल्ले मैं जो लोग शांति के खोज मैं निकले हुए हैं। कोइ घर वार त्याग कर साधु बन रहे हैं, कोइ योग-प्रानायम मैं लगे हैं, कोई दान पुण्य कर रहे हैं, कहने का मतलब शांति के खोज मैं इंसान भटक रहे हैं, फिर भी शांति प्राप्त नही कर पा रहे हैं । आत्मा जिसको पा कर शांत होता है उसे शांति का स्वरूप कहा जाता है ,असली शांति क्या हैं, कैसे प्राप्त करें, ये पुरी जानकारी नीचे दिए गए हैं।
मैं कौन हूँ ०
क्या मैं एक लड़का, इंसान, राम, श्याम, गीता, इत्यादि हूं? क्या हैं मेरा परिचय, मैं कौन हूं, कहां से आया, मेरा अस्तित्व क्या है, अगले वार जब जनम लूंगा तो क्या मैं इंसान ही बनूंगा.... अगर आप थोड़ा सा इस सवाल को शांत दिमाग़ से सोचेंगे तो आप को कोई ज़वाब नहीं मिलेंगे । वास्तव जीवन मैं जो हमारे मां- बाप ,रिश्तेदार जो भी होते हैं ये सिर्फ़ इसी जनम का ही होते है। अगली बार क्या पता हमें पशु - पक्षी इत्यादि जनम लेना पड़े! तो इसलिए हमारे कोई असली परिचय बताना मुुश्किल हैं ये सिर्फ़ इसी जनम का ही नहीं हमें ऐसा हजारों लाखों जन्म मिल चुका था। इसलिए अगर कोई हमारे असली परिचय बताना चाहता है वह होगा आत्मा। आत्मा ही हमारे असली परिचय हैं। मैं एक आत्मा हूं, आत्मा का कभी विनाश नहीं होता हैं, शरीर खतम होगा पर आत्मा अजर अमर हैं। आत्मा आज भी हैं, कल भी था, और हमेशा रहेगा।
दुःख कितना प्रकार का है ०
जैसे हमें अभी ये ज्ञान प्राप्त हुआ कि हम कोई इंसान नहीं हैं, हमारे परिचय आत्मा हैं, ठीक उसी प्रकार आत्मा का भी कोई पिता होता हैं। बच्चा अगर पिता से कुछ मांग करेगा तो पिता उसे ला कर देता हैं, अगर बच्चा पिता से बिछड़ जाते हैं तो उसे कोई देने वाला नही होगा फिर उसे दुःख का अनुभव होता हैं। दुःख ३ प्रकार का होता हैं (क) आदिभौतिक (ख) आदिभौतिक (ग) आध्यत्मिक
आदिभौतिक ० आदिभौतिक मतलब ये जो दुःख हैं, इसे हमे भौतिक जगत से मिलता हैं, जैसे किसी आदमी से, रिश्तेदार, पिता-पुत्र, जानवर इत्यादि से जो दुःख प्राप्त होता हैं उसे आदिभौतिक दुःख कहते हैं ।
आदिदैविक ० आदिदैविक मतलब देवताओ से जो दुःख मिलता हैं, जैसे प्राक्रितिक आफादा बाढ़, भुकम्प, बिजली, कोरोना, महामरी इत्यादि से जो दुःख प्राप्त होता हैं उसे आदिदैविक दुःख कहते हैं । ये दुःख ना चाह्ते हुए भी आपको मिलेगा ही मिलेगा, इस दुःख कोइ बच नही सकता...
आध्यत्मिक ० ये जो दुःख हैं इसे कोइ मेह्सुस नही कर पाता हैं और आजकाल की समाज मैं ये बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं । ये दुःख ना देवताओ से ना कोइ इंसान, ना कोइ आफदाओ से मतलब किसी से भी नही मिलता हैं । फिर कौन देता हैं ये दुःख ? यहा पर आपके मन मैं एक सवाल पैदा हो सकता हैं, आखिर कौन, कहा से ये दुःख आ सकता हैं । ये हमारे आत्मा का दुःख हैं.... आखिर बच्चा पिता से बिछड़ गया हैं, आत्मा का भी कोई पिता होता हैं, बच्चा पिता से मिलना चाहते हैं ठीक उसी तरह जैसे आत्मा , परमआत्मा से मिलना चाहते हैं.... और हम उसे मिलने नही दे रेहे हैं । आध्यत्मिक दुःख मेहसुस कैसे होगा उदाहरण स्वरूप ... आपके पास सब कुछ हैं धन,दौलत, गाड़ी, बंगला, सुंदर स्त्री, नौकर-चाकर इत्यादि फिर भी आपके मन मैं शांति नही फिर भी उदास रेहते हैं कभी कभी कुछ ना कुछ कमी होने का मेहसूस होता हैं। यहीं आध्यात्मिक दुःख होता हैं। जिसे इंसान समाधान करने के खोज पर निकल पड़े। हजारों लाखों मैं कोई भाग्यवान इंसान होगा जो इस दुःख का समाधान करने में सफल होता हैं।
हमारे मन को शांति क्यों नही मिलता है ०
जब हम अपने मां की गर्भ में थे, वह एक ऐसी जगह था जहां इतने कष्ट मिलते थे, जरा सोचो कि हम कैसे रह चुके गर्भ में, जहां इतनी गर्मी, भूख, खून, मल मूत्र, हिलने डुलने का कोई जगह नहीं क्या परिस्थिति थी वहा, इतनी कष्टदायक परिस्थिति में हम लोग हाथ जोड़े भगवान को पुकार रहे थे, ताकि हमे इस जातना से जल्दी ही बाहर निकाले, तब हमे पेहली बार भगवान के दर्शन होता हैं । तब हमसे भगवान एक बचन लेता हैं कि बाहर जाके मेरा भक्त बनेगा, कोइ बुरी काम नही करेगा हमेशा धर्ममार्ग मैं हि अपने जीवन बितायेगा । लेकिन हम बाहर आते हि मोह-माया के जाल मैं फंस जाते हैं और बस्तु जगत को अपना मान के खो जाते हैं और अपने असली पिता को भुल जाते हैं, इसिलिये हमे पल पल मैं दुःख मिलता हैं, और हमारे मन को शांति नही मिलता है ।
भगवान के पास केसे जा सकते है ०
भगवान के पास जाने के लिये भगवान का कर्म करना पड़ेगा, भगवान का कर्म क्या हैं ये एक बहुत खास प्रश्न हैं जो आम इंसान इतना जल्दी समझ नही पायेगा । सिर्फ मंदिर जाना, पुजा करना, तीर्थ जाना ये सब अधुरा सेवा हैं, भगवान के पास जाने के लिये भगवान का कर्म करना पड़ेगा । जब कोइ ऐसा कर्म करेगा जिसे भगवान को सुख मिलता हैं तभी मन कि शांति प्राप्त कर सकता हैं । आगे और बहुत कुछ हैं लिखना यहि समाप्त करता हूँ अगर आपको ये विषय पसंद आया तो simantaroy045@gmail.com ईमैल जरूर करे ।